विधुत धारिता या संधारित्र

परावैधुत पदार्थ

सामान्यतः चालक पदार्थ परावैधुत पदार्थ होते है। परावैद्युत वे पदार्थ होते है, जो अपने में से विधुत प्रवाहित नहीं होने देते है, किन्तु विधुत प्रभाव का प्रदर्शन करते है । ये विधुत क्षेत्र में रखे जाने पर ध्रुवित हो जाते है ।

परावैधुत पदार्थ दो प्रकार के होते है । 

(1) ध्रुवीय परावैधुत (Polar dilectric):-

बाह्य विधुत क्षेत्र की अनुपस्थिति में जब किसी पदार्थ के अणु में +ve आवेशों का केंद्र, -ve आवेशों के केंद्र से भिन्न हो अर्थात संपातित नहीं होता है तब वे पदार्थ ध्रुवीय परावैद्युत पदार्थ कहलाते हैं। ex- एचसीएल, ह२ो, CO2 इत्यादि

ध्रुवीय परावैद्युत पर विद्युत क्षेत्र का प्रभाव

विद्युत क्षेत्र की अनुपस्थिति में प्रत्येक अणु में स्थायी विद्युत द्विध्रुव होता है लेकिन ध्रुवीय अणु विच्छिन्न रूप से व्यवस्थित रहते हैं जिसके कारण उसका परिणामी द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है।

लेकिन विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में प्रत्येक द्विध्रुव में बल आघूर्ण लगता है जिससे प्रत्येक अणु विद्युत क्षेत्र की दिशा में संरेखित हो जाता है अतः सभी अणुओं के द्विध्रुव आघूर्ण आपस में जुड़कर एक निश्चित द्विध्रुव आघूर्ण का निर्माण करता है।

(2) अध्रुवीय परावैधुत (Non Polar Dilectric):-

जब किसी पदार्थ के अणु में धन आवेशों का केंद्र तथा ऋण आवेशों का केंद्र एक ही बिंदु पर सकेंद्रित हो तो उसे पदार्थ को अध्रुवीय परावैद्युत पदार्थ कहते हैं। ex- N2 , O2 , CH4 , बेंज़ीन इत्यादि ।

अध्रुवीय पदार्थ पर विधुत क्षेत्र का प्रभाव

किसी अध्रुवीय अणु में स्वयं का द्विध्रुव आघूर्ण शून्य होता है, जब विद्युत क्षेत्र आरोपित किया जाता है तो ऋण आवेश तथा धन आवेशों में एक बल कार्य करता है जिसके फलस्वरूप अध्रुवीय अणु एक ध्रुवीय अणु में परिवर्तित हो जाता है और प्रत्येक अणु विद्युत क्षेत्र की दिशा में संरेखित होकर एक परिणामी द्विध्रुव बनता है।

अर्थात विद्युत क्षेत्र की उपस्थिति में पदार्थ का एक निश्चित विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण होता है।

परावैद्युत का ध्रुवण (Polarisation of dilectric):- 

विद्युत क्षेत्र लगाए जाने पर अध्रुवीय परावैद्युत के अणुओं के धन आवेशों के केंद्र तथा ऋण आवेशों के केंद्र विस्थापित हो जाने की क्रिया को परावैद्युत का ध्रुवण कहते हैं।

NOTE:- बाह्य क्षेत्र हटाते ही प्रेरित विद्युत द्विध्रुव आघूर्ण समाप्त हो जाता है।

परावैद्युतांक (Dilectric Constant):- 

जब किसी परावैद्युत पदार्थ को बाह्य विद्युत क्षेत्र \fn_cm E_0 में रखा जाता है तो उसमे विपरीत दिशा में विधुत क्षेत्र \fn_cm E_p उत्पन्न ( प्रेरित ) होता है । जिसका मान हमेशा \fn_cm E_0 से कम होता है

अर्थात परावैद्युत पदार्थ के अंदर परिणामी विद्युत क्षेत्र का मान होगा ।

\fn_cm \left [ E=E_0-E_p \right ]\;\;\;or\;\;\;\left [ E=\frac{E_0}{K} \right ]

जहां \fn_cm K एक नियतांक है जिसे पदार्थ का परावैद्युतांक कहते हैं

यहाँ \fn_cm \left [ K=\frac{E_0}{E} \right ]

अर्थात आरोपित विद्युत क्षेत्र की तीव्रता तथा परावैद्युत पदार्थ के अंदर परिणामी विद्युत क्षेत्र की तीव्रता के अनुपात को परावैद्युतांक कहते हैं

NOTE:-

(1) परावैद्युतांक को सापेक्ष विद्युतशीलता भी कहते हैं।

(2) पानी में ध्रुवीय अणु होते हैं तथा ट्रांसफार्मर तेल में अध्रुवीय अणु होते हैं इसलिए ट्रांसफार्मर का तेल अपेक्षाकृत अच्छा परावैद्युत है

ध्रुवण सदिश

ध्रुवण सदिश किसी परावैद्युत के ध्रुवण की कोटि का मापन करता है। यह किसी ध्रुवीय परावैद्युत के इकाई आयतन के द्विध्रुव आघूर्ण के रूप में परिभाषित किया जाता है

ध्रुवण के कारण सभी अणु या परमाणु आरोपित क्षेत्र की दिशा में संरेखित हो जाते हैं चूँकि परावैद्युत समांगी है।  माना कि प्रत्येक का द्विध्रुव आघूर्ण \fn_cm \vec{p} है । यदि परावैद्युत के इकाई आयतन में परमाणुओं या अणुओं की संख्या n हो तो ध्रुवण सदिश होगा

\fn_cm \vec{P}=n\vec{p}

ध्रुवण सदिश का S.I मात्रक C/m² होता है

सिद्ध कीजिए कि ध्रुव सदिश का परिमाण ध्रुवीय आवेशों के पृष्ठ आवेश घनत्व के समान होता है

चित्र के अनुसार,

परावैद्युत का द्विध्रुव आघूर्ण = \fn_cm q_p d

यदि \fn_cm \sigma_p\rightarrow ध्रुवण आवेशों का पृष्ठ आवेश घनत्व हो तो

परावैद्युत का द्विध्रुव आघूर्ण = \fn_cm \sigma_pAd=\sigma_p V

∴ ध्रुवण सदिश = \fn_cm \frac{\sigma_pV}{V}

\fn_cm \left [ P=\sigma_p \right ]\;\;\;\;\; proved

विधुत प्रवृति

अधिकतर परावैद्युत पदार्थ में ध्रुव सदिश परावैद्युत की सम्मानित विद्युत क्षेत्र तीव्रता के समानुपाती होता है अर्थात

जहां विद्युत प्रवृत्ति है जो किसी परावैद्युत की धृत का एक प्राकृतिक मापन है यह एक बीमाहीन राशि है जिसका कोई मात्रक नहीं होता है

परावैधुत सामर्थ्य

किसी परावैद्युत के विद्युत विभाजन के बिना उसे पर आरोपित किया जा सकने वाले विद्युत क्षेत्र की तीव्रता का अधिकतम मन ही पदार्थ का परावैद्युत समर्थ कहलाता है

जब किसी परावैद्युत को विद्युत क्षेत्र में रखा जाता है तो वह दुर्वित हो जाता है ध्रुवीय परावैद्युत में प्रत्येक परमाणु में खिंचाव होता है तथा परमाणु में कुछ विकृति उत्पन्न हो जाती है

जैसे-जैसे विद्युत क्षेत्र की तीव्रता में वृद्धि होती है तो परमाणु में और खिंचाव होता है तथा विकृति में भी वृद्धि होती है तथा परमाणु से इलेक्ट्रॉन अलग हो जाते हैं तथा परमाणु गान आयन में परिवर्तित हो जाता है यह प्राइवेट का विद्युत विभाजन कहलाता है अब परावैध विद्युत रोधी नहीं रहता है

परावैद्युत समर्थ का एस आई मात्रक होता है तथा बीमा होता है

विधुत धारिता की अवधारणा

किसी चालक की विद्युत धारिता उसे चालक द्वारा आवेश को संग्रहित करने की क्षमता की माप होती है। जिस प्रकार किसी बर्तन में द्रव डालने पर उसका ताल ऊंचा उठने लगता है ठीक उसी प्रकार किसी चालक को आवेश देने पर उसका विद्युत विभव आवेश के अनुपात में बढ़ने लगता है।

किसी चालक के लिए

अथवा

जहां एक नियतांक है जिसका मन चालक के आकार आकृति समीप वर्ती मध्य तथा चालक के पास अन्य चालकों की उपस्थिति पर निर्भर करता है। इसे चालक की विद्युत धारिता कहते हैं।

अतः किसी चालक की विद्युत धारिता उसे चालक को दिए गए आवेश तथा इस आवेश के कारण चालक में विभव में होने वाली वृद्धि के अनुपात को हम कहते हैं। यदि तो

अतः किसी चालक की विद्युत धारिता संख्यात्मक रूप से उसे आवेश के बराबर होती है जो उसको जो उसके विभव में एकांत वृद्धि कर दे।

विद्युत धारिता का मात्रक होता है

चुकी फर्द बहुत बड़ा मात्रक है अतः व्यवहार में छोटे मंत्र का प्रयोग किया जाता है

विद्युत धारिता का विमीय सूत्र

किसी चालक की धारिता को प्रभावित करने वाले कारक

चालक का आकार:- चालक का आकार बढ़ने से उसकी धारिता बढ़ जाती है

चालक की आकृति: – चालक का जाकर सामान रखते हुए उसकी आकृति बदलने पर उसकी धारिता भी बदल जाती है।

क्योंकि आकृति बदलने से चालक का विभव बदल जाता है

चालक के समीप वर्ती माध्यम की प्रकृति:- चुकी चालक का विभव माध्यम पर निर्भर करता है विद्युत धारिता भी माध्यम पर निर्भर करती है माध्यम का परावैद्युतांक आपेक्षिक विद्युतशीलता जितनी अधिक होती है चालक का विद्युत विभव उतना ही काम तथा धारिता उतना ही अधिक होती है

चालक के पास अन्य चालकों की उपस्थिति:- आवेशित चालक के पास एक अन्य अन्वेषित चालक लाने पर आवेशित चालक का विभव काम हो जाता है। फल स्वरुप उसकी धारिता बढ़ जाती है

विलगित गोलीय चालक की धारिता

मन की त्रिज्या का एक गोल है जिस पर आवेश रखा गया है गले का विद्युत विभव होगा

हम जानते हैं कि

किसी गोलीय चालक की धारिता इसकी त्रिज्या के समानुपाती होती है अर्थात गले का आकार जितना बड़ा होगा धारिता उतनी अधिक होगी

पृथ्वी की धारिता

पृथ्वी की त्रिज्या

पृथ्वी की धारिता होगी

धारिता होने के लिए गले का आकार कितना होगा

संधारित्र तथा इसका सिद्धांत

किसी चालक का आकार या आयतन बढ़ाएं बिना उसकी धारिता में वृद्धि करने के लिए जो समायोजन किया जाता है उसे संधारित्र कहते हैं

हम जानते हैं कि

यदि किसी प्रकार चालक के विभव को कम कर दिया जाए तो उसे पुनः उसी विभव तक लाने के लिए हमें चालक को और अधिक आवेश देना होगा इस प्रकार चालक की धारिता बढ़ जाएगी

चित्र के अनुसार एक अन्वेषित प्लेट को के निकट लाने पर के भीतरी तल पर आवेश तथा बाहरी डाल पर आवेश उत्पन्न हो जाता है

की आवेश के कारण का विभव काम हो जाता है जबकि के आवेश के कारण का विभव बढ़ जाता है लेकिन आवेश निकट होने के कारण पर इसका अधिक प्रभाव पड़ता है

जिसके कारण का विभव थोड़ा काम हो जाता है इस प्रकार की धारिता कुछ बढ़ जाती है

यदि को पृथ्वी से जोड़ दिया जाता है तो चालक का विभव और काम हो जाता है तथा की धारिता और बढ़ जाती है

अब यदि चालक को एक के समीप लाया जाए तो चालक ए का विभव और काम होता जाता है जिससे धारिता बढ़ती जाती है चालक को पुनः उसके प्रारंभिक विभव तक लाने के लिए इसे और अधिक आवेश दिया जा सकता है

अतः स्पष्ट है कि आवेशित चालक के समीप पृथ्वी से संबंधित एक अन्य चालक को लाने पर आवेशित चालक की धारिता बढ़ जाती है। दो चालकों के ऐसे समायोजन को ही संधारित्र कहते हैं यही संधारित्र का सिद्धांत है संधारित्र कई प्रकार के होते हैं जैसे समांतर प्लेट संधारित्र गोलियां संधारित्र बेलनाकार संधारित्र इत्यादि

संधारित्र

किया जाता है कि उनके मध्य के छोटे से स्थान में बहुत विद्युत आवेश की उच्च मात्रा का संग्रहण किया जा सके इस प्रकार के बनावट को संधारित्र कहते हैं

किसी चांद संधारित्र के दोनों चालकों पर आवेश की मात्रा बराबर तथा चिन्ह विपरीत होती है

र संधारित्र का आवेश

संधारित्र का विभव विभावांतर

संधारित्र का संकेत

किसी भी समय संधारित्र का आवेश तथा विभव एक दूसरे के समानुपाती होता है

अर्थात

जहां सी एक नियतांक है जो चालक के आकार क्षेत्रफल और उसके चारों ओर के माध्यम पर निर्भर करता है इसे धारिता या विद्युत धारिता कहते हैं

उपयोग:- इसका उपयोग विद्युत आवेशों के संग्रहण के लिए किया जाता है। आवेशों के संग्रह के साथ-साथ यह विद्युत ऊर्जा का भी संग्रह करता है।

यह सुरक्षित रूप से बड़ी मात्रा में आवेश अवशोषित कर सकता है तथा बड़ी मात्रा में आवेश मुक्त भी कर सकता है इसका उपयोग विद्युत उपकरणों में किया जाता है

समान्तर प्लेट संधारित्र

मन की एक समांतर प्लेट संधारित्र है जिसके प्लाटों का क्षेत्रफल ए तथा बीच की दूरी दी है

माना कि पहले प्लेट में तथा दूसरे प्लेट में आवेश है जिसके कारण प्लेटों के बीच विद्युत क्षेत्र होगा

जहां निर्वात में विद्युतशीलता है

यदि प्लेटों के बीच विद्युत क्षेत्र समरूप हो तो हम जानते हैं की प्लेटों के बीच विभावांतर होगा

संधारित्र की धारिता होगी

अतः समांतर प्लेट संधारित्र की धारिता प्लेट के क्षेत्रफल दूरी तथा प्लेट के बीच मध्य पर निर्भर करता है

यदि प्लेटों के बीच परावैद्युत भर दिया जाए जिसकी परावैद्युतांक के हो तो संधारित्र की धारिता होगी

अर्थात संधारित्र की धारिता गुना बढ़ जाएगी प्लाटों के बीच सामान्यतः अभ्रक मॉम कागज इत्यादि भर दिया जाता है ताकि इसकी धारिता बढ़ जाए

एक फर्द के लिए समांतर प्लेट संधारित्र का क्षेत्रफल कितना होगा यदि प्लेटों के बीच की दूरी 1 सेमी हो

अतः एक फर्द का संधारित्र बना असंभव है

किसी आवेशित संधारित्र में संचित ऊर्जा

किसी संधारित्र के आवेशन की प्रक्रिया संधारित्र की एक प्लेट से दूसरे प्लेट में आवेश कैसे स्थानांतरण की प्रक्रिया के बराबर होता है

माना कि किसी स्थान प्लेट में आवेश है तथा उसे समय संधारित्र का विभावांतर होगा

आफ्टर संधारित्र में अतिरिक्त आवेश को स्थानांतरित करने में किया गया कार्य होगा

अतः क्यों आवेश को लाने में किया गया कार्य होगा

यही किया गया कार्य संधारित्र में स्थित ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है

 

परावैधुत स्लैब युक्त समान्तर प्लेट संधारित्र की धारिता

मन की एक समांतर प्लेट संधारित्र है जिसके प्लेट का क्षेत्रफल एक तथा उसके मध्य दूरी दी है

जब प्लेटों के बीच व्यू या निर्वाण हो तो संधारित्र की धारिता होगी

तथा प्लेटों के बीच विद्युत क्षेत्र होगा

मन की प्लेटों के बीच एक परावैद्युत स्लैब जिसकी मोटी टी तथा परावैद्युतांक के है रखा जाता है

जब संधारित्र की दोनों पाटो के मध्य विभावांतर इस प्रकार होगा

अतः संधारित्र की धारिता होगी

यदि अर्थात परावैद्युत पूरी तरह भरा हुआ हो तो

यदि संधारित्र के बीच चालक को भर दिया जाए तो

यदि चालक पूरी तरह से भरा हुआ हो तो

आवेशित चालकों के बीच आवेश का पुनर्वितरण

बैटरी द्वारा संधारित्र को आवेशित करने पर ऊर्जा का ह्राष

संधारित्रों का संयोजन

व्यवहार में अनेक परिस्थितियों में दो या दो से अधिक संधारित्रों को परस्पर जोड़ने की आवश्यकता पड़ती है

संधारित्र का समायोजन मुख्यतः दो प्रकार में किया जाता है

श्रेणी क्रम संयोजन:- 

हेलो इस क्रम में सभी संधारित्र को एक ही पद से जोड़ा जाता है वीडियो क्या हो गया क्या

समान्तर क्रम संयोजन

समान्तर प्लेट संधारित्र की प्लेटों के बीच विधुत क्षेत्र में ऊर्जा घनत्व

परावैधुत युक्त संधारित्र

 

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