विधुत विभव ( Electric Potential)

  • किसी आवेश द्वारा उत्पन्न विधुत क्षेत्र के किसी बिंदु पर विधुत क्षेत्र की प्रबलता दो प्रकार से व्यक्त किया जा सकता है ।
    1. उस बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता द्वारा \fn_cm \left ( \vec{E}=\frac{\vec{F}}{q_0} \right ) जो एक सदिश राशि है ।
    2. उस बिंदु पर विधुत विभव द्वारा , जो एक अदिश राशि है
  • विधुत विभव वह भौतिक गुण है जो विधुत आवेश के प्रवाह की दिशा को निर्धारित करता है । विधुत धारा का प्रवाह हमेशा उच्च विभव से निम्न विभव की ओर होता है, जब तक की दोनों चालकों का विभव समान न हो जाये ।

NOTE:- पृथ्वी के विभव को हमेशा शून्य विभव माना जाता है क्योंकि पृथ्वी का आकार इतना बड़ा है की उसे कुछ आवेश देने अथवा उसमे से कुछ आवेश निकल लेने पर उसके विभव पर कोई अंतर नहीं पड़ता है । इस प्रकार पृथ्वी का विभव नियत रहता है जिसे शून्य माना जाता है । ( जैसे समुन्द्र तल के ऊंचाई को शून्य ऊंचाई माना जाता है )

 

विधुत विभव 

विधुत क्षेत्र में किसी बिंदु पर विधुत विभव का मान इकाई धनावेश को अनंत से किसी भी पथ द्वारा उस बिंदु तक लाने में किये गए कार्य के बराबर होता है ।

यदि परीक्षण आवेश \fn_cm +q_0 को अनंत से P तक लाने में किया गया कार्य \fn_cm w हो तो P बिंदु पर विभव का मान होगा ।

\dpi{120} \fn_cm \left [ v=\frac{w}{q_0} \right ]

यह एक अदिश राशि है तथा इसका S.I मात्रक J/C होता है जिसे वोल्ट (Volt) कहते है । इसका बीमीय सूत्र \dpi{120} \fn_cm \left [ ML^2T^{-3}A^{-1} \right ] है ।

” 1C आवेश को अनंत से विधुत क्षेत्र के किसी बिंदु तक लाने में यदि 1 Joule कार्य करना पड़े तो उस बिंदु पर बिधुत विभव का मान 1 वोल्ट होगा “

 

विधुत आवेश के कारण किसी बिंदु पर विभव 

माना की O बिंदु पर एक बिंदु आवेश +Q स्थित है । इससे r दुरी पर एक बिंदु P है जहाँ पर विधुत विभव का मान ज्ञात करनी है । अनंत से P के बीच एक बिंदु A पर जो की O से x दुरी पर है विचार करते है जहाँ पर परीक्षण आवेश \dpi{120} \fn_cm q_0 है ।

\dpi{120} \fn_cm q_0 पर \dpi{120} \fn_cm q के कारण लगने वाला बल होगा ।

\dpi{120} \fn_cm \vec{F}_{int}=\frac{kqq_0}{x^2}\;\;\;\vec{OA} की ओर

\dpi{120} \fn_cm q_0 को P बिंदु के तरफ लाने के लिए उस पर \dpi{120} \fn_cm F_{int} के विपरीत दिशा में बाह्य बल लगाना होगा ,

अर्थात  \dpi{120} \fn_cm \vec{F}_{ext}=\frac{kqq_0}{x^2}\;\;\;\vec{AO}  की ओर

∴ परीक्षण आवेश \dpi{120} \fn_cm q_0 को बिंदु P की ओर \dpi{120} \fn_cm dx विस्थापित करने में किया गया कार्य होगा

\dpi{120} \fn_cm dw=F_{ext}(-dx)\cos0^0   ( -ve चिन्ह इसीलिए लिया गया है की x का मान समय के साथ कम हो रहा है )

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow dw==-F_{ext}.dx

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow dw=-\frac{kqq_0}{x^2}dx

अतः परीक्षण आवेश \dpi{120} \fn_cm q_0 को अनंत से बिंदु P तक लाने में किया गया कार्य होगा ।

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow w=-kqq_0\int_{\infty}^{r}\frac{1}{x^2}dx

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow w=-kqq_0\left [ -\frac{1}{x} \right ]_{\infty}^r

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow w=kqq_0\left [ \frac{1}{r}-\frac{1}{\infty} \right ]

\dpi{120} \fn_cm \left [ w=\frac{kqq_0}{r} \right ]

अतः विभव के परिभाषा के अनुसार , P बिंदु पर \dpi{120} \fn_cm q के कारण विधुत विभव होगा ।

\dpi{120} \fn_cm v=\frac{w}{q_0}

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow v=\frac{kqq_0}{rq_0}

\dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ v=\frac{kq}{r} \right ]}

NOTE:-

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{1.}}  अनंत पर विधुत विभव का मान शून्य होता है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{2.}}  बहुत से आवेशों के कारण किसी बिंदु पर विधुत विभव का मान

\dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ v_p=\frac{kq_1}{r_1}+\frac{kq_2}{r_2}-\frac{kq_3}{r_3}+\frac{kq_4}{r_4}-\frac{kq_5}{r_5} \right ]}

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{3.}}  विधुत क्षेत्र के किसी दो बिंदु के विभव के अंतर को विभवांतर कहते है अथवा विधुत क्षेत्र में +1C आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया गया कार्य ही उस दोनों बिंदुओं का विभवांतर कहलाता है ।

अर्थात    \dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ v_A - v_B=\frac{w_{B\rightarrow A}}{q_0} \right ]}

जहाँ \dpi{120} \fn_cm v_A\rightarrow A बिंदु पर का विभव है तथा

\dpi{120} \fn_cm v_B\rightarrow  B बिंदु पर का विभव है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{4.}} \dpi{120} \fn_cm \because v=\frac{w}{q}

\dpi{120} \fn_cm \therefore w=qv

अर्थात यदि \dpi{120} \fn_cm q आवेश को \dpi{120} \fn_cm v विभव तक ले जाया जाये तो किया गया कार्य होगा \dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ w=qv \right ]}

उसी प्रकार विधुत क्षेत्र के किसी दो बिंदुओं के लिए होगा ।  \dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ w_{B\rightarrow A}=q(v_A-v_B) \right ]}

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{5.}} विभव \dpi{120} \fn_cm v\propto \frac{1}{r}  जबकि कूलम्ब बल  \dpi{120} \fn_cm F\propto \frac{1}{r^2}

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{6.}} +ve आवेश के निकट विभव हमेशा +ve होता है तथा -ve आवेश के निकट विभव हमेशा -ve होता है । +ve आवेश से दूर जाने पर विभव घटता है तथा -ve आवेश दे दूर जाने पर विभव बढ़ता है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{7.}} यद्यपि \dpi{120} \fn_cm v को किसी बिंदु पर विभव कहा जाता है , परन्तु वास्तव में यह \dpi{120} \fn_cm r तथा \dpi{120} \fn_cm \infty के बीच का विभवांतर होता है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{8.}}                                                                  

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{9.}}                                                                     \dpi{120} \fn_cm v_p=\frac{kq}{\left | \;\vec{r}_0 -\vec{r}\; \right |}

 

Exercise


(1) 200 μC के -ve आवेश के कारण इससे 3m की दुरी पर स्थित बिंदु ज्ञात कीजिये । \dpi{120} \fn_cm (6\times10^5v)

(2) 100 μC का एक आवेश किसी 200 μC के अन्य आवेश से 12 cm की दुरी पर रखा जाता है । दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के मध्य बिंदु पर विभव की गणना कीजिये । \dpi{120} \fn_cm (4.5\times10^7 v)

(3) किसी समबाहु त्रिभुज की भुजा 6 cm है । +5 μC के तीन आवेश त्रिभुज के कोणों पर रखे है । त्रिभुज के आधार के मध्य बिंदु पर विभव ज्ञात कीजिये । \dpi{120} \fn_cm 3.87\times10^6v

(4) मूल बिंदु पर रखे 20 μC के किसी आवेश के कारण ( 0.3m, 0.4m, 0.5m) निर्देशांक पर विभव की गणना कीजिये । \dpi{120} \fn_cm (2.55\times10^5v)

(5) किसी वर्ग की भुजा 10 cm है। इसके प्रत्येक कोने पर क्रमशः +10, -10, +15 तथा +30 μC के आवेश रखे गए है । वर्ग के विकर्णों के प्रतिच्छेद बिंदु पर विभव की गणना करे । \dpi{120} \fn_cm (57.28\times10^5v)

(6) किसी वर्ग के तीन कोणों पर क्रमशः 2,4 तथा 6 μC के आवेश रखे गए है । वर्ग के खाली कोने पर कितना आवेश रखा जाना चाहिए ताकि वर्ग के केंद्र पर कुल विभव का मान शून्य हो जाये ? \dpi{120} \fn_cm (-12 \mu C)

(7) \dpi{120} \fn_cm 3\times10^{-8}C तथा \dpi{120} \fn_cm -2\times10^{-8}C के दो आवेशों के मध्य दुरी 15 cm है। दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के किस बिंदु पर विधुत बिभव शून्य होगा । (9 cm पर )

(8) किसी वसर्ग के तीन कोणों पर q , 2q तथा 4q आवेश रखे गए है । वर्ग के चौथे कोने पर कितना आवेश रखा जाये की वर्ग के केंद्र पर विभव शून्य हो जाये । ( -7q)

(9) दो आवेशों \dpi{120} \fn_cm 4\times10^{-9}C तथा \dpi{120} \fn_cm -3\times10^{-9}C के मध्य दुरी 0.1 m है। दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के किस बिंदु पर विधुत विभव का मान शून्य होगा ।

(10) 20 μC के आवेश द्वारा एक विधुत क्षेत्र उत्पन्न होता है । इन आवेश से 10 cm तथा 5 cm पर दो बिंदु है । इन बिंदुओं पर विभव का मान ज्ञात करें , तथा साथ ही किसी प्रोटोन को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किये गए कार्य की गणना करें । \dpi{120} \fn_cm (1.8\times10^6v, 3.6\times10^6v, 2.88\times10^{-13}J)

(11) \dpi{120} \fn_cm 3.2\times10^{-7}c  के आवेश को अनंत से किसी बिंदु तक लाने में \dpi{120} \fn_cm 1.6\times10^{-4}j  कार्य करना पड़ता है । उस बिंदु पर विधुत विभव क्या है । ( 500V)

(12) 0.01 C आवेश को बिंदु A से B तक ले जाने में 12 जूल कार्य करना पड़ता है । A तथा B के बीच विभवांतर ज्ञात करें । (1200 volt)

(13) दो बिंदुओं के बीच 8 वोल्ट का विभवांतर है । \dpi{120} \fn_cm 2.5\times10^{-6}C आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में कितना कार्य करना पड़ेगा? \dpi{120} \fn_cm (2\times10^{-5}J)

(14) 10 μC तथा 5 μC के दो धनावेशों के मध्य दुरी 12 cm है । इन आवेशों को 6 cm निकट लाने में कितना कार्य करना पड़ेगा । ( 3.75J)

(15) यदि 2C के किसी आवेश को -10v विभव के किसी बिंदु से अन्य बिंदु जहाँ विभव V है, तक ले जाया जाता है तो किया गया कार्य 100J होता है । V का मान ज्ञात करें । (40V)

(16) किसी तार को 10 cm त्रिज्या के वृत्त में मोड़ा जाता है । इसमें 200 μC का आवेश एकसमान रूप से वितरित किया जाता है । वृत्त के केंद्र पर विधुत विभव की गणना कीजिये । \dpi{120} \fn_cm (1.8\times10^7v)

(17) किसी वर्ग ABCD की भुजा 0.2m है। इसके A , B तथा C कोनो पर क्रमशः 2 nC , 4nC तथा 8nC आवेश रखे जाते है । किसी 2nC के आवेश को डी से वर्ग के केंद्र पर स्थानांतरित करने में किये गए कार्य की गणना कीजिये । \dpi{120} \fn_cm (6.43\times10^{-7}J)

(18) किसी निर्देशांक तंत्र के मूल बिंदु पर \dpi{120} \fn_cm 6\times10^{-3}C का एक आवेश स्थित हो तो बिंदु A (0,0,2cm) पर स्थित \dpi{120} \fn_cm -2\times10^{-12}C आवेश को बिंदु C ( 0,4cm,5cm) से होकर बिंदु B ( 0, 3 cm ,0) तक ले जाने में किया गया कार्य ज्ञात कीजिये । \dpi{120} \fn_cm (1.8\times10^{-3}J)

(19) चित्र (a) में  \dpi{120} \fn_cm v_A-v_B के मान की गणना कीजिये \dpi{120} \fn_cm (q=+1.0\times10^{-6}C) . यदि A तथा B की स्थितियां चित्र (b) के अनुसार हो तो \dpi{120} \fn_cm v_A-v_B के मान में क्या अंतर पड़ जायेगा। \dpi{120} \fn_cm (-4.5\times10^3v)

 

विधुत द्विध्रुव के कारण किसी बिंदु पर विधुत विभव

 

1 . अक्षीय रेखा पर :-

माना, एक विधुत द्विध्रुव AB है जो दो आवेश -q तथा +q से मिलकर बने है तथा जिसके बीच की दुरी 2l है । इसके मध्य से r दुरी पर अक्षीय रेखा में एक बिंदु P है , जहाँ पर विधुत विभव का मान ज्ञात करनी है । द्विध्रुव AB का द्विध्रुव आघूर्ण होगा \dpi{120} \fn_cm \left [ \vec{p}=q2\vec{\l} \right ]

-q आवेश के कारण P बिंदु पर विधुत विभव

\dpi{120} \fn_cm v_1=\frac{-kq}{(r+l)}

+q आवेश के कारण P बिंदु पर विधुत विभव

\dpi{120} \fn_cm v_2=\frac{kq}{(r-l)}

∴ P बिंदु पर परिणामी विधुत विभव होगा

\dpi{120} \fn_cm v=v_1+v_2

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow v=\frac{-kq}{(r+l)}+\frac{kq}{(r-l)}

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow v=kq\left ( \frac{-1}{r+l}+\frac{1}{r-l} \right )

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow v=kq\left ( \frac{-r+l+r+l}{r^2-l^2} \right )

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow v=\frac{kq2l}{(r^2-l^2)}

छोटे द्विध्रुव के कारण ( \dpi{120} \fn_cm r>>l )  अर्थात  \dpi{120} \fn_cm (r^2-l^2)\approx r^2

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow v=\frac{kq2l}{r^2}

\dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ v=\frac{kp}{r^2} \right ]\;\;\;\;\;(\because p=q2l)}

2 . निरक्षीय रेखा पर :-

माना, एक विधुत द्विध्रुव AB है जो दो आवेश -q तथा +q से मिलकर बने है तथा जिसके बीच की दुरी 2l है । इसके मध्य से r दुरी पर अक्षीय रेखा में एक बिंदु P है , जहाँ पर विधुत विभव का मान ज्ञात करनी है ।

-q आवेश के कारण P बिंदु पर विधुत विभव

\dpi{120} \fn_cm v_1=\frac{-kq}{\sqrt{r^2+l^2}}

+q आवेश के कारण P बिंदु पर विधुत विभव

\dpi{120} \fn_cm v_2=\frac{kq}{\sqrt{r^2+l^2}}

∴ P बिंदु पर परिणामी विधुत विभव होगा

\dpi{120} \fn_cm v=v_1+v_2

\dpi{120} \fn_cm v=-\frac{kq}{\sqrt{r^2+l^2}}+\frac{kq}{\sqrt{r^2+l^2}}

\dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ v=0 \right ]}

3 . किसी अन्य बिंदु पर :-

माना, एक विधुत द्विध्रुव AB है जो दो आवेश -q तथा +q से मिलकर बने है तथा जिसके बीच की दुरी 2l है । इसके मध्य से r दुरी पर एक बिंदु P है , जहाँ पर विधुत विभव का मान ज्ञात करनी है ।

माना की सदिश \dpi{120} \fn_cm \vec{op} द्विध्रुव आघूर्ण \dpi{120} \fn_cm \vec{p} के साथ \dpi{120} \fn_cm \theta कोण बनती है । A तथा B से OP पर क्रमशः AC तथा BD लांब खींचे गए है ।

चित्र के अनुसार

\dpi{120} \fn_cm OC=OD=l\cos\theta

छोटे द्विध्रुव के लिए हम लिख सकते है

\dpi{120} \fn_cm AP=CP=r+l\cos\theta

\dpi{120} \fn_cm BP=DP=r-l\cos\theta

-q आवेश के कारण P बिंदु पर विधुत विभव

\dpi{120} \fn_cm v_1=\frac{-kq}{AP}=\frac{-kq}{r+l\cos\theta}

+q आवेश के कारणP बिंदु पर विधुत विभव

\dpi{120} \fn_cm v_2=\frac{kq}{BP}=\frac{kq}{r-l\cos\theta}

अतः P बिंदु पर परिणामी विभव होगा

\dpi{120} \fn_cm v=v_1+v_2

\dpi{120} \fn_cm v=\frac{kq}{r-l\cos\theta}-\frac{kq}{r+l\cos\theta}

\dpi{120} \fn_cm v=kq\left [ \frac{1}{r-l\cos\theta}-\frac{1}{r+l\cos\theta} \right ]

\dpi{120} \fn_cm v=kq\left [ \frac{r+l\cos\theta-r+l\cos\theta}{r^2-l^2\cos^2\theta} \right ]

\dpi{120} \fn_cm v=\frac{kq2l\cos\theta}{r^2-l^2\cos^2\theta}

\dpi{120} \fn_cm \because r>>>l\cos\theta

\dpi{120} \fn_cm \therefore v=\frac{kp\cos\theta}{r^2}

\dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ v=\frac{kp\cos\theta}{r^2} \right ]\;\;\;\;\;(\because p=2ql)}

case 1: अक्षीय स्थिति में ( \dpi{120} \fn_cm \theta=0^0)

\dpi{120} \fn_cm v=\frac{kp\cos0^0}{r^2}

\dpi{120} \fn_cm \left [ v=\frac{kp}{r^2} \right ]

case 2: निरक्षीय स्थिति में ( \dpi{120} \fn_cm \theta=90^0)

\dpi{120} \fn_cm v=\frac{kp\sin90^0}{r^2}

\dpi{120} \fn_cm \left [ v=0 \right ]

NOTE:-

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{1.}} किसी बिंदु आवेश के कारण विभव \dpi{120} \fn_cm \frac{1}{r} के समानुपाती होता है और विधुत द्विध्रुव के कारण विभव \dpi{120} \fn_cm \frac{1}{r^2} के समानुपाती होता है , अर्थात किसी द्विध्रुव के कारण विभव तेजी से घटता है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{2.}}

 

Exercise


()

 

विधुत क्षेत्र के तीव्रता तथा विभव में सम्बन्ध 

माना की \dpi{120} \fn_cm q एक बिंदु आवेश है जिसके चारों ओर विधुत क्षेत्र है । \dpi{120} \fn_cm q से \dpi{120} \fn_cm r दुरी पर एक परीक्षण आवेश \dpi{120} \fn_cm q_0 पर विचार करते है । माना की \dpi{120} \fn_cm q के कारण P बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता \dpi{120} \fn_cm \vec{E} है

अतः \dpi{120} \fn_cm q_0 पर लगने वाला विधुत बल होगा  \dpi{120} \fn_cm \vec{F}=q_0\vec{E}  जो की आतंरिक बल है

माना की इस बल के कारण \dpi{120} \fn_cm q_0 में \dpi{120} \fn_cm d\vec{r} का विस्थापन होता है

अतः इस बल के कारण \dpi{120} \fn_cm d\vec{r} विस्थापन के लिए कार्य का मान होगा ।

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow dw=\vec{F}.d\vec{r}

\dpi{120} \fn_cm \Rightarrow dw=q_0\vec{E}.d\vec{r}

विभवांतर के परिभाषा के अनुसार

\dpi{120} \fn_cm dv=-\frac{dw}{q_0}   ( -ve चिन्ह है क्योंकि  \dpi{120} \fn_cm dw आतंरिक बल है )

\dpi{120} \fn_cm dv=\frac{q_0\vec{E}.d\vec{r}}{q_0}

\dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ dv=-\vec{E}.d\vec{r} \right ]}

\dpi{120} \fn_cm {\color{DarkBlue} \left [ dv=-Edr\cos\theta \right ]}

जहाँ \dpi{120} \fn_cm \theta, \dpi{120} \fn_cm \vec{E}  तथा \dpi{120} \fn_cm d\vec{r} के बीच का कोण है ।

यदि \dpi{120} \fn_cm \theta=0^0   तब \dpi{120} \fn_cm dv=-Edr

\dpi{120} \fn_cm \therefore \left [ E=-\frac{dv}{dr} \right ]

जहाँ \dpi{120} \fn_cm \frac{dv}{dr} , दुरी के साथ विभव परिवर्तन की दर है जिसे विभव प्रवणता (Potential Gradiant) कहते है । यहाँ -ve चिन्ह यह प्रदर्शित करता है की विधुत क्षेत्र की दिशा में अर्थात विधुत बल रेखा के अनुदिश विधुत विभव घटता है ।

NOTE:-

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{1.}} \dpi{120} \fn_cm \because E=-\frac{dv}{dr}  इसीलिए विधुत क्षेत्र की तीव्रता का मात्रक V/m भी होता है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{2. }} विधुत विभव एक अदिश राशि है लेकिन विभव प्रवणता एक सदिश राशि है ।

समविभव पृष्ठ ( Equipotential Surface)

वह पृष्ठ जिसके प्रत्येक बिंदु पर आवेश वितरण के कारण विभव समान होता है , समविभव पृष्ठ कहलाता है ।

समविभव पृष्ठ के गुण :-

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{1.}} किसी समविभव पृष्ठ पर किसी बिंदु आवेश को एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक ले जाने में किया गया कार्य शून्य होता है ।

   हम जानते है की     \dpi{120} \fn_cm v_B-v_A=\frac{w_{A\rightarrow B}}{q_0}

\dpi{120} \fn_cm \because v_B-v_A=0    \dpi{120} \fn_cm \left [ w_{A\rightarrow B}=0 \right ]

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{2.}} विधुत क्षेत्र की दिशा हमेशा समविभव पृष्ठ के लम्बवत होती है ।

हम जानते है की   \dpi{120} \fn_cm dv=-\vec{E}.d\vec{r}

यहाँ \dpi{120} \fn_cm dv=0 अतः  \dpi{120} \fn_cm \vec{E}.d\vec{r}=0

अर्थात \dpi{120} \fn_cm \vec{E} की दिशा \dpi{120} \fn_cm d\vec{r} के लम्बवत होती है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{3.}} समविभव पृष्ठ प्रबल अथवा दुर्बल विधुत क्षेत्र के भागों को प्रदर्शित करता है ।

 हम जानते है की  \dpi{120} \fn_cm E=\frac{dv}{dr}

यदि \dpi{120} \fn_cm dv नियत हो तो    \dpi{120} \fn_cm \left [ E\propto\frac{1}{dr} \right ]

अर्थात E प्रबल होने पर dr ( समविभव पृष्ठ के बीच की दुरी ) कम होगा ।

अतः प्रबल विधुत क्षेत्र के भाग में समविभव पृष्ठ पास पास होते है तथा दुर्बल विधुत क्षेत्र के भाग में समविभव पृष्ठ दूर दूर होते है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{4.}}  दो समविभव पृष्ठ कभी भी एक दूसरे को प्रतिच्छेद नहीं कर सकते है ।

कारण :- यदि दो समविभव पृष्ठ एक दूसरे को प्रतिच्छेद करते है तो प्रतिच्छेद बिंदु पर विधुत विभव के दो मान होंगे जो की संभव नहीं है । अतः दो समविभव पृष्ठ एक दूसरे को कभी भी प्रतिच्छेद नहीं कर सकते है ।

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{5.}}

Excersice

एक्साम्प्ले

विधुत स्थितिज ऊर्जा (Electric Potential Energy)

\fn_cm q आवेश को अनंत से विद्युत क्षेत्र में किसी बिंदु तक लाने में किया गया कार्य ही विद्युत स्थितिज ऊर्जा कहलाती है। यदि किसी बिंदु का विभव \fn_cm V हो तो \fn_cm q आवेश को उस बिंदु तक लाने में किया गया कार्य जो विद्युत स्थितिज ऊर्जा कहलाती है होगी

\fn_cm \left [ U=qV \right ]\;\;\;or\;\;\;\left [ \Delta U=q \Delta V \right ]

” विधुत आवेशों के किसी निकाय की विधुत स्थितिज ऊर्जा उस कार्य के बराबर होती है जो उन आवेशों को अनंत से परस्पर समीप लेकर निकाय की रचना करने में किया जाता है ।”

दो बिंदु आवेशों के निकाय की विधुत स्थितिज ऊर्जा

मना की दो बिंदु आवेश \fn_cm Q_1 तथा \fn_cm Q_2 है जिसके बीच की दूरी \fn_cm r है। हम जानते हैं कि \fn_cm Q_2 को \fn_cm \infty से B तक ले जाने में किया गया कार्य ही इस निकाय का विद्युत स्थितिज ऊर्जा होगी

उसी प्रकार , हम जानते हैं की इकाई धन आवेश को \fn_cm \infty से B  तक ले जाने में किया गया कार्य बिंदु B पर का विभव होगा

अर्थात                   \fn_cm V=\frac{kQ_1}{r}

\fn_cm \therefore \;Q_2 आवेश को \fn_cm \infty से B तक ले जाने में किया गया कार्य होगा

\fn_cm W=Q_2V

\fn_cm W=\frac{kQ_1 Q_2}{r}

यही किया गया कार्य निकाय में स्थितिज ऊर्जा के रूप में संचित हो जाती है

अर्थात                    \fn_cm \mathbf{\left \langle U=\frac{kQ_1Q_2}{r} \right \rangle}

यह एक अदिश राशि है तथा इसका सी मात्रक जूल होता है

NOTE:-

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{1.}} यह सूत्र केवल एक युग्म ( pair ) के लिए मान्य है। दो से अधिक आवेश होने पर निकाय की कुल विद्युत स्थितिज ऊर्जा आवेशों के सभी संभव युग्मों का विद्युत स्थितिज ऊर्जाओं के बीजगणितीय योग के बराबर होती है अर्थात

        \fn_cm U=\frac{kq_1q_2}{r_1}+\frac{kq_2q_3}{r_3}+\frac{kq_1q_3}{r_2}

\dpi{120} \fn_cm {\color{Red} \mathbf{2.}} दो आवेश सजातीय होने पर वे एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते हैं अतः उन्हें एक दूसरे के समीप लाने में प्रतिकर्षण बल के विरुद्ध कार्य करना पड़ता है जिससे निकाय की विद्युत स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है तथा उन्हें एक दूसरे से दूर ले जाने में प्रतिकर्षण बल के कारण कार्य निकाय द्वारा किया जाता है जिससे निकाय की विद्युत स्थितिज ऊर्जा घटती है।

इसी प्रकार दो आवेश विजातीय होने पर वे एक दूसरे को आकर्षित करते हैं अतः उन्हें एक दूसरे के समीप लाने पर कार्य निकाय द्वारा होता है जिससे निकाय की स्थितिज ऊर्जा घटती है तथा उन्हें एक दूसरे से दूर ले जाने पर आकर्षण बल के विरुद्ध निकाय पर कार्य करना पड़ता है जिससे निकाय की स्थितिज ऊर्जा बढ़ती है

किसी बाह्य विद्युत क्षेत्र में आवेशों की विद्युत स्थितिज ऊर्जा

माना की दो बिंदु आवेश \fn_cm Q_1 तथा \fn_cm Q_2 बाह्य विद्युत क्षेत्र के अंदर स्थित है जिसके बीच की दूरी \fn_cm r है। माना की A बिंदु पर का विभव  \fn_cm V_1 तथा B बिंदु पर का विभव \fn_cm V_2 है।

\fn_cm \therefore बाह्य विद्युत क्षेत्र के कारण \fn_cm Q_1 तथा \fn_cm Q_2 की स्थितिज ऊर्जा क्रमशः \fn_cm Q_1V_1 तथा \fn_cm Q_2V_2 होगी

\fn_cm \therefore निकाय की कुल स्थितिज ऊर्जा होगी

\fn_cm \left \langle U=Q_1V_1+Q_2V_2+\frac{kQ_1Q_2}{r} \right \rangle

यदि \fn_cm Q_1 की स्थिति सदिश \fn_cm \vec{r}_1 तथा \fn_cm Q_2 की स्थिति सदिश \fn_cm \vec{r}_2 हो तो

\fn_cm \left \langle U=Q_1V(r_1)+Q_2V(r_2)+\frac{kQ_1Q_2}{r_{21}} \right \rangle

किसी खोखले गोलीय कोश या ठोस गोलीय चालक के कारण विधुत विभव

Case 1: किसी वाह्य बिंदु पर

\fn_cm \left [ V=\frac{kQ}{r} \right ]

Case 2: सतह पर 

\fn_cm \left [ V=\frac{kQ}{R} \right ]

Case 3: गोले के अंदर  

गोले के अंदर किसी भी बिंदु पर विभव , सतह के विभव के बराबर होता है

अर्थात, \fn_cm \left [ V_{inside}=\frac{kQ}{R} \right ]

स्थिर विधुत क्षेत्र में चालकों का व्यवहार

(1) किसी चालक के अंदर परिणामी विधुत क्षेत्र की तीव्रता शून्य होती है :-

बाह्य विद्युत क्षेत्र \fn_cm E_0 के कारण A भाग -ve आवेशित तथा B भाग +ve आवेशित हो जाता है। आवेशों के इस पुनर्वितरण के कारण चालक में अतिरिक्त विद्युत क्षेत्र (\fn_cm E_p) उत्पन्न होता है जिसे प्रेरित विद्युत क्षेत्र कहते हैं जिसकी दिशा \fn_cm E_0 के विपरीत होती है । यह चालक के अंदर विद्युत क्षेत्र को खत्म कर देगा तथा आवेशों की स्थिर अवस्था पुनर्स्थापित हो जाती है। अतः विद्युत क्षेत्र में रखें चालक के अंदर परिणामी विद्युत क्षेत्र शून्य होता है

इसके कारण

(a) चालक के भीतर विद्युत बल रेखाएं अनुपस्थित होती है।
(b)चालक के पृष्ठ के ठीक नीचे स्थित सभी बिंदु सामान विभव पर होते हैं।

(2) आवेशित चालक के अंदर बाहर विद्युत क्षेत्र चालक के पृष्ठ के लंबवत होती है :-

यदि विद्युत क्षेत्र \fn_cm (\vec{E}) चालक के पृष्ठ के लंबवत नहीं होगा तो विद्युत क्षेत्र का स्पर्श रेखीय घटक ( चित्र में \fn_cm E\cos\theta) के कारण पृष्ठ पर आवेशों का प्रवाह अर्थात पृष्ठ धारा उत्पन्न होगी, परंतु स्थिर विधुतिकी में पृष्ठ धारा नहीं होती है। अतः पृष्ठ के ठीक बाहर विद्युत क्षेत्र का केवल अभिलंब घटक ही संभव है।

(3) किसी चालक के अंदर परिणामी आवेश शून्य होता है

गॉस के प्रमेय के अनुसार

\fn_cm \oint \vec{E}.d\vec{A}=\frac{Q_{inside}}{\epsilon_0}

\fn_cm \because चालक के अंदर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है

\fn_cm \therefore \;\; \frac{Q_{inside}}{\epsilon_0}=0\;\;\;\;\;\Rightarrow \;\;\;\;\;\left [ Q_{inside}=0 \right ]

(4) आवेश चालक के पृष्ठ पर होते हैं

\fn_cm \because चालक के अंदर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है जिसके कारण चालक के अंदर अतिरिक्त आवेश शून्य होता है, यदि हम चालक में अतिरिक्त आवेश डालते हैं तो वह अतिरिक्त आवेश चालक के पृष्ठ पर चले जाते हैं।

(5) विभिन्न बिंदुओं पर पृष्ठ आवेश वितरण अलग-अलग हो सकता है

यदि A तथा B को पतले तार से जोड़ दिया जाता है तो दोनों गोले का विभव समान हो जाएगा।

अर्थात \fn_cm V_A=V_B

\fn_cm \frac{1}{4\pi\epsilon_0}.\frac{Q_1}{R_1}=\frac{1}{4\pi\epsilon_0}.\frac{Q_2}{R_2}

\fn_cm \frac{Q_1 R_1}{4\pi R_1^2}=\frac{Q_2 R_2}{4\pi R_2^2}

\fn_cm \sigma_1R_1=\sigma_2R_2

\fn_cm \left [ \frac{\sigma_1}{\sigma_2}=\frac{R_2}{R_1} \right ]

अर्थात आवेशों का वितरण इस प्रकार होगा कि दोनों चालकों का विभव समान हो जिसके कारण छोटे त्रिज्या वाले चालक पर पृष्ठीय आवेश घनत्व अधिक तथा बड़े त्रिज्या वाले चालक पर पृष्ठीय आवेश घनत्व कम हो जाता है।

(6) संपूर्ण चालक के लिए विद्युत विभव नियत रहता है

हम जानते हैं कि \fn_cm \left [ E=\frac{dV}{dr} \right ]

\fn_cm \because चालक के अंदर विद्युत क्षेत्र शून्य होता है अर्थात \fn_cm E=0

\fn_cm \therefore \fn_cm \frac{dV}{dr}=0  अर्थात  \fn_cm \left [ V=constant \right ]

अतः किसी स्थिर विधुत क्षेत्र में चालक के अंदर सभी भागों में विभव समान होता है। और यह विभव पृष्ठ के विभव के बराबर होता है

स्थिर विधुत परिक्षण

किसी निश्चित क्षेत्र को विद्युत क्षेत्र के प्रभाव से बचाने की प्रक्रिया को स्थिर विद्युत परिक्षण कहते हैं। संवेदनशील उपकरण तथा वस्तुएं प्रबल बाह्य विधुत क्षेत्र से बहुत अधिक प्रभावित होती है, जिसके कारण इसकी कार्य प्रणाली अवांछित क्षेत्र के प्रभाव में प्रभावित होकर खराब होने लगती है।

जिसके लिए इसे किसी खोखले चालक के आवरण में रखकर सुरक्षित रखा जा सकता है क्योंकि खोखले चालकों में विद्युत क्षेत्र शून्य होता है और यह क्षेत्र बाह्य विधुत क्षेत्र से अप्रभावित भी रहता है।

अन्य शब्दों में हम कह सकते हैं कि चालक के अंदर के खोखले भाग में स्थित कण या आवेश बाहर क्षेत्र के प्रभाव से परिरक्षित (shielded) रहता है।

यही कारण है कि बिजली गिरने के समय बंद कार या बस में बैठे रहना किसी पेड़ के नीचे या मैदान में खड़े रहने की तुलना में अधिक सुरक्षित रहता है।

 

 

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