तरंग प्रकाशिकी में प्रकाश का तरंग प्रकृति जैसे व्यतिकरण , विवर्तन , ध्रुवण आदि विषयों का अध्ययन किया जाता है जिसे प्रकाश का कणिका प्रकृति द्वारा नहीं समझा जा सकता है ।
प्रकाश की प्रकृति
प्रकाश विकिरण – ऊर्जा का एक स्वरुप है जो निर्वात या किसी माध्यम में संचरण करती है तथा हमारी आँख के रेटिना पर पड़कर दृष्टि इन्द्रियों (Visual nerves) को उत्तेजित करके वस्तुओं का आभास करता है ।
प्रकाश के सम्बन्ध में निम्नलिखित तथ्य उलेखनीय है ।
प्रकाश सरल रेखा में चलता है ।
प्रकाश निर्वात () तथा द्रव्यात्मक माध्यम में चल सकता है ।
प्रकाश का परावर्तन तथा अपवर्तन होता है ।
प्रकाश में वर्ण विक्षेपण होता है ।
प्रकाश में विवर्तन होता है , अर्थात तीक्ष्ण किनारों में आंशिक रूप से प्रकाश मुड़ जाती है ।
प्रकाश का व्यतिकरण होता है ।
प्रकाश में ध्रुवण होता है ।
प्रकाश कुछ पदार्थों में से इलेक्ट्रान उत्सर्जित कर सकता है , यह घटना ” प्रकाश – वैधुत प्रभाव ” कहलाती है ।
इन तथ्यों की व्याख्या करने के लिए प्रकाश की प्रकृति के सम्बन्ध में विभिन्न सिद्धांत प्रतिपादन किये गए है । सन 1637 में दकार्ते ने प्रकाश के कणिका मॉडल को प्रस्तुत किया तथा स्नेल के नियम को व्युत्पन्न किया । इस मॉडल से प्रकाश का परावर्तन तथा अपवर्तन की व्याख्या की गई । इस सिद्धांत के अनुसार जब प्रकाश अपवर्तन के बाद अभिलम्ब की ओर मुड़ती है तो उसकी वेग अधिक हो जाती है अर्थात प्रकाश का वेग विरल माध्यम की अपेक्षा सघन माध्यम में अधिक होता है । आइजक न्यूटन ने प्रकाश के कणिका सिद्धांत को विस्तार पूर्वक समझाया जिसके कारण कणिका मॉडल का श्रेय प्रायः न्यूटन को दिया जाता है ।
सन 1678 में डच वैज्ञानिक क्रिस्टिआन हाइगेन्स ने प्रकाश का तरंग सिद्धांत को प्रस्तुत किया । यह मॉडल प्रकाश के अपवर्तन तथा परावर्तन की व्याख्या बहुत ही सरल पूर्वक करती है । साथ ही इस मॉडल से यह भी सिद्ध होता है की जब प्रकाश अपवर्तन के बाद अभिलम्ब की ओर मुड़ती है तो उसकी वेग कम हो जाती है अर्थात प्रकाश का वेग विरल माध्यम की अपेक्षा सघन माध्यम में कम होता है , जिसे 1850 ईस्वी में फूको द्वारा किये गए प्रयोग से पुष्टि की गई ।
लेकिन दो कारणों से तरंग सिद्धांत को सहज स्वीकार नहीं किया गया (a) न्यूटन का अत्यधिक प्रभाव (b) प्रकाश निर्वात में कैसे गमन कर सकता है जबकि किसी भी तरंग को संचरण करने के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है ।
सन 1801 में थॉमस यंग द्वारा किये गए व्यतिकरण के प्रयोगों तथा आगामी 40 वर्षों के प्रयोगों ने यह स्पष्ट कर दिया की प्रकाश, तरंग की भांति व्यवहार करती है तथा छोटे तरंगदैर्घ्य होने के कारण यह सीधी रेखा में गमन करती है । यद्यपि प्रश्न अभी भी यही था की प्रकाश निर्वात में कैसे संचरण कर सकती है । इसे 1864 मैक्सवेल द्वारा समझया गया जब उन्होंने प्रकाश सम्बन्धी बिधुत चुम्बकीय सिद्धांत को प्रस्तुत किया । उन्होंने प्रयोग द्वारा सिद्ध किया की बिधुत चुम्बकीय तरंगे निर्वात में वेग से संचरण करती है तथा प्रकाश भी विधुत चुम्बकीय तरंग है।
प्रश्न :- क्या प्रकाश सीधी रेखा में गमन करती है ?
उत्तर :- वास्तव में प्रकाश तरंगों के रूप में चलता है तथा बहुत छोटी तरंगदैर्घ्य होने के कारण यह सीधी रेखा में चलती हुई प्रतीत होती है । लेकिन यदि इसके रस्ते में कोई अवरोध आती है जिसका आकार प्रकाश के तरंगदैर्घ्य के लगभग समान होती है तो प्रकाश अवरोध के किनारों पर मुड़ जाती है यह घटना विवर्तन कहलाती है , यह तरंगों का एक सामान्य गुण है ।
तरंगाग्र (Wave-front)
किसी दिए गए क्षण पर किसी माध्यम में समान कला में कम्पन कर रहे सभी कणों के बिन्दुपथ (Locus) को तरंगाग्र कहते है । तरंगाग्र के लम्बवत खींची गई रेखा , तरंग की दिशा अर्थात प्रकाश की किरण की दिशा को प्रदर्शित करती है । किसी तरंगाग्र का आकार उसके स्रोत के आकृति पर निर्भर करता है जिसके अनुसार तरंगाग्र तीन प्रकार के हो सकते है । (a) गोलाकार तरंगाग्र (b) बेलनाकार तरंगाग्र (c) समतल तरंगाग्र
स्रोत से काफी अधिक दुरी पर लिए गए तरंगाग्र का छोटा सा भाग लगभग समतल तरंगाग्र की तरह होता है
हाइगेन्स का तरंग सिद्धांत( Huygen’s Wave Theory)
हाइगेन्स का सिद्धांत किसी प्रकाश तरंग के संचरण की ज्यामितीय रुपरेखा प्रदर्शित करता है । इस सिद्धांत का प्रयोग किसी तरंगाग्र की किसी क्षण पर स्थिति ज्ञात करने में किया जा सकता है यदि तरंगाग्र की वर्तमान स्थिति ज्ञात हो ।
हाइगेन्स के सिद्धांत के अनुसार
- प्रकाश का प्रत्येक स्रोत विक्षोभ केंद्र होता है जिससे तरंगें सभी दिशाओं में संचरित होती है । स्रोत से समान दुरी पर सभी कण जो समान कला में कम्पन करते है , एक पृष्ठ का निर्माण करते है , जिसे तरंगाग्र कहते है । किसी क्षण के तरंगाग्र को प्राथमिक तरंगाग्र कहते है ।
- प्राथमिक तरंगाग्र पर स्थित माध्यम के प्रत्येक कण एक नए तरंग स्रोत का कार्य करता है जिससे नयी तरंगे सभी दिशाओं में निकलती है । इन नयी तरंग को द्वितीयक तरंगिकाएं कहते है जो उस माध्यम में सभी दिशाओं में प्रकाश के वेग से गति करती है ।
- किसी क्षण पर द्वितीयक तरंगिकाओं की स्पर्श रेखाओं को घेरे हुए अग्र पृष्ठ उस क्षण तरंगाग्र की नयी स्थिति को प्रदर्शित करती है । इस नयी तरंगाग्र को द्वितीयक तरंगाग्र कहते है ।
- किरणे तरंगाग्र के लम्बवत होती है ।
NOTE:-
तरंग संचरण में ऊर्जा का प्रवाह केवल आगे की ओर होती है । ( हाइगेन्स ने तर्क दिया की द्वितीयक तरंगिकाएँ का आयाम आगे की दिशा में अधिकतम तथा पीछे की दिशा में शून्य होता है )
हाइगेन्स के सिद्धांत के अनुसार प्रकाश का परावर्तन तथा अपवर्तन
प्रकाश का अपवर्तन
माना की एक समतल तरंगाग्र AB जो t=0 समय में सतह ZZ’ पर आपतिति होती है । यह सतह सघन माध्यम को विरल माध्यम से अलग करती है , जिसका अपवर्तनांक क्रमशः तथा है । माना की विरल माध्यम में प्रकाश का वेग तथा सघन माध्यम में प्रकाश का वेग है ।
हाइगेन्स के सिद्धांत के अनुसार तरंगाग्र AB का प्रत्येक बिंदु नए स्रोत की तरह कार्य करता है जहाँ से द्वितीयक तरंगिकाएँ निकलती है । माना की B बिंदु से उत्पन्न द्वितीयक तरंगिकाएँ t समय के बाद B’ पर पहुँचती है ।
अर्थात
ठीक उसी समय A बिंदु से उत्पन्न द्वितीयक तरंगिकाएँ सघन माध्यम में बिंदु A’ पर पहुँचती है
अर्थात
हाइगेन्स के अनुसार t समय के बाद तरंगाग्र की नई स्थिति A’B’ होगी ।
चित्र के अनुसार , ( आपतन कोण )
( अपवर्तन कोण )
यह स्नेल का अपवर्तन का नियम है ।
NOTE:-
सघन माध्यम में प्रकाश का वेग विरल माध्यम से कम होती है , अतः अपवर्तित किरण अभिलम्ब की ओर मुड़ जाती है ।
यहाँ पर
परावर्तन तथा अपवर्तन के समय प्रकाश की आवृत्ति में कोई परिवर्तन नहीं होता है । प्रकाश की आवृत्ति केवल स्रोत पर निर्भर करती है ।
परावर्तन तथा अपवर्तन , आपतित प्रकाश की पदार्थ के परमाण्वीय अवयवों के साथ अन्योन्य क्रिया द्वारा होता है । जब प्रकाश का , सतह के परमाणु के साथ अन्योन्य क्रिया होती है तो वह प्रकाश की आवृत्ति को लेकर प्रणोदित दोलन (Forced Oscillation) करने लगती है । इस परमाणु द्वारा उत्सर्जित प्रकाश की आवृत्ति उसके दोलन की आवृत्ति के बराबर होती है अतः विकिरित प्रकाश की आवृत्ति अपवर्तित प्रकाश की आवृत्ति के बराबर होती है । अतः प्रकाश की आवृत्ति केवल स्रोत की आवृत्ति पर निर्भर करती है |
अपवर्तन के पश्चात् प्रकाश की तरंगदैर्घ्य बदल जाती है । माना की विरल माध्यम में प्रकाश की तरंगदैर्घ्य तथा सघन माध्यम में तरंगदैर्घ्य है
We know that
माना की प्रकाश के स्रोत की आवृत्ति है , अर्थात
विरल माध्यम के लिए
और सघन माध्यम के लिए
यहाँ पर i.e
अतः जब प्रकाश विरल माध्यम से सघन माध्यम में प्रवेश करती है तो प्रकाश की तरंगदैर्घ्य कम हो जाती है ।
तरंग गति में ऊर्जा तरंग के आयाम के वर्ग के समानुपाती होती है । अर्थात तरंग की ऊर्जा ∝ ( आयाम )² ⇒ E ∝ (A)²
प्रकाश का अपवर्तन
माना की AB एक समतल तरंगाग्र है जो t=0 समय में xy सतह पर i कोण के साथ आपतित होती है । सभी आपतित किरणे AB के लम्बवत होगी ।
हाइगेन्स के अनुसार तरंगाग्र AB का प्रत्येक बिंदु नए स्रोत का काम करती है जिससे द्वितीयक तरंगिकाएँ निकलती है । माना की B बिंदु से निकला द्वितीयक तरंगिकाएँ t समय में xy के B’ तक पहुँचती है
जहाँ c माध्यम में प्रकाश की चाल है
ठीक उसी समय A से निकला द्वितीयक तरंगिकाएँ t समय में दुरी (ct) तय करके A’ तक पहुँचती है
चित्र के अनुसार A’B’ t समय के बाद द्वितीयक तरंगाग्र है ।
चित्र के अनुसार , आपतन कोण और परावर्तन कोण है
समकोण त्रिभुज ABB’ और AA’B’ में
AA’ =BB’ = ct ( दोनों में उभयनिष्ठ है )
इसलिए समकोण त्रिभुज ABB’ और AA’B’ सर्वांगसम होंगे
अर्थात ∠i=∠r
यही परावर्तन का नियम है ।
आंकिक प्रश्न(1) d मोटाई एवं μ अपवर्तनांक की काँच की पट्टी में होकर प्रकाश गुजरता है । यदि निर्वात में प्रकाश की चाल c हो , तो काँच की पट्टी को प्रकाश कितने समय में पार कर लेगा । (μd/c) (2) काँच का अपवर्तनांक 1.5 है । काँच में प्रकाश की चाल क्या होगी ? क्या काँच में प्रकाश की चाल , प्रकाश के रंग पर निर्भर करती है ? यदि हाँ , तो लाल तथा बैगनी में से कौन सा रंग काँच के प्रिज्म में धीमा चलता है ? (3) यदि एकवर्णीय प्रकाश की तरंगदैर्घ्य λ है , यदि यह μ अपवर्तनांक वाले माध्यम में प्रवेश करता है तो अपवर्तित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य कितनी होगी । (4) 0.589 nm तरंगदैर्घ्य एक वर्णीय प्रकाश वायु से जल की सतह पर आपतित होती है । (a) परावर्तित (b) अपवर्तित प्रकाश की तरंगदैर्घ्य , आवृत्ति तथा चाल क्या होगी । ( जल का अपवर्तनांक 4/3 है ) |
प्रश्न(1) दो ऐसे प्रकाशीय तथ्यों के नाम बतलाइये जो न्यूटन के ” प्रकाश के कनिका सिद्धांत द्वारा नहीं समझाए जा सकते है ” (2) तरंगाग्र किसे कहते है । प्रायः यह कितने प्रकार के होते है । (3) तरंगाग्र एवं किरण में क्या अंतर है ? (4) तरंग संचरण के लिए हाइगेन्स के सिद्धांत को लिखे । (5) किसी बिंदु स्रोत से अपसरित प्रकाश तथा किसी दूर स्थित तारे से पृथ्वी पर आपतित प्रकाश के तरंगाग्र की ज्यामितीय आकृति क्या है । (6) एक उत्तल लेंस के फोकस पर कोई बिंदु स्रोत रखा गया है लेंस से निर्गत प्रकाश के तरंगाग्र की ज्यामितीय आकृति क्या होगी। (7) किसी प्रिज्म , उत्तल लेंस तथा अवतल दर्पण में एक समतल तरंगाग्र आपतित होता है , परावर्तन या अपवर्तन के बाद बने तरंगाग्र की ज्यामितीय आकृति क्या होगी , चित्र बनाकर दिखाएँ । (8) जब कोई किरण किसी सतह पर आपतित होती है तो परावर्तित तथा अपवर्तित प्रकाश की आवृत्ति पर क्या प्रभाव पड़ता है , विस्तार पूर्वक समझाएं । (9) जब कोई किरण किसी सतह पर आपतित होती है तो परावर्तित तथा अपवर्तित प्रकाश का वेग , तरंगदैर्घ्य तथा आयाम पर क्या प्रभाव पड़ता है । (10) जब प्रकाश विरल माध्यम से सघन माध्यम में जाती है तो उसकी चाल में कमी आ जाती है । क्या चाल में कमी प्रकाश तरंगों द्वारा संचारित ऊर्जा में कमी को दर्शाती है ? (11) हाइगेन्स का द्वितीयक तरंगिकाओं का सिद्धांत क्या है । इससे परावर्तन तथा अपवर्तन के नियमों को व्युत्पन्न कीजिये । (12) न्यूटन के कणिका सिद्धांत के अनुसार प्रकाश जब विरल से सघन माध्यम में जाती है तो उसका वेग कम हो जाती है । उन्होंने इस बात की पुष्टि कैसे की ? |