स्थिर विधुतिकी भौतिक विज्ञानं की वह शाखा है, जिसमे विरामावस्था में आवेशों का अध्ययन किया जाता है।
विधुत आवेश :-
आवेश किसी पदार्थ का वह गुण है , जिसके कारण इसमें विधुत प्रभाव उत्पन्न होते है। आवेश सिर्फ दो छोटे कण में पाए जाते है, इलेक्ट्रान और प्रोटोन
इलेक्ट्रान का द्रव्यमान –
प्रोटोन का द्रव्यमान –
न्यूट्रॉन का द्रव्यमान –
इलेक्ट्रान का आवेश –
प्रोटोन का आवेश –
न्यूट्रॉन का आवेश –
सामान्य अवस्था में , किसी वस्तु के अंदर इलेक्ट्रॉन्स तथा प्रोटोन्स की संख्या समान होती है। अर्थात वस्तु का कुल आवेश =0
कोई वस्तु तभी आवेशित होती है जब इलेक्ट्रॉन्स और प्रोटोन्स की संख्या समान न हो। जिस वस्तु के पास इलेक्ट्रॉन्स की संख्या अधिक होगी वह ऋण आवेश कहलाती है , और जिस वस्तु के पास प्रोटोन की संख्या अधिक होगी वह धन आवेश कहलाती है।
सर्वप्रथम बेंजामिन फ्रैंकलिन ने आवेश को धन एवं ऋण चिन्ह दिए
NOTE
-
- चालक और कुचालक : वे पदार्थ जिनमे सामान्य ताप में ही अधिक संख्या में मुक्त इलेक्ट्रान होते है उन्हें चालक कहते है । वे आसानी से गति कर सकते है उदाहरण के लिए लोहा , ताम्बा, एल्युमीनियम इत्यादि । कुचालक या परावैद्युत वे पदार्थ है जिसमे बाह्य इलेक्ट्रान बहुत मजबूती से बंधे होते है इसीलिए वे गति नहीं कर सकते है अर्थात सामन्य ताप में कुचालक में मुक्त इलेक्ट्रान नहीं पाए जाते है ।
- आवेशन के दौरान सिर्फ मुक्त इलेक्ट्रान का ही स्थानांतरण होता है।
- आवेशन के दौरान वस्तु का द्रव्यमान भी प्रभावित होते है।
- आवेश चालक की बाहरी सतह पर रहता है : किसी भी चालक को दिया गया आवेश हमेशा उसकी बहरी सतह पर रहता है, क्योंकि समान आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित करते है एवं एक दूसरे से अधिकतम संभव दुरी पर रहने का प्रयास करते है। इसी कारण समान त्रिज्या के खोखले एवं ठोस गोले एकसमान आवेश धारण करते है एवं साबुन का बुलबुला आवेशित होने पर फैलता है ।
- +ve आवेश को भूसम्पर्कित करने पर इलेक्ट्रान पृथ्वी से चालक की ओर प्रवाहित होती है , यदि -ve आवेश को भूसम्पर्कित किया जाये तो इलेक्ट्रान चालक से पृथ्वी की ओर प्रवाहित होती है ।
आवेशन की विधियाँ :-
किसी वस्तु में मुख्यतः तीन विधि से आवेश प्राप्त किये जा सकते है।
a. घर्षण द्वारा आवेश या घर्षण विधुतिकी :-दो उचित पदार्थों को रगड़ने या घर्षण से उत्पन्न विधुत को घर्षण विधुतिकी कहते है। पदार्थों को जब आपस में रगड़ा जाता है तो इनमे से एक पदार्थ इलेक्ट्रॉन्स का त्याग करता है तथा अन्य पदार्थ द्वारा इलेक्ट्रॉन्स ग्रहण कर लिए जाते है।वह पदार्थ जो इलेक्ट्रॉन्स खोता है धन आवेशित कहलाती है तथा जो पदार्थ इलेक्ट्रॉन्स ग्रहण करता है ऋण आवेशित कहलाती है।
धन (+ve) आवेश | ऋण (-ve) आवेश |
काँच की छड़ | सिल्क कपड़ा |
फर या ऊन | एबोनाइट , अम्बर |
सूखे बाल | कंघी |
b. भौतिक स्पर्श द्वारा आवेश :- यदि किसी चालक को आवेशित चालक से स्पर्श कराया जाये तो अनावेशित चालक में आवेश उत्पन्न हो जाता है क्योंकि स्पर्श बिंदु पर कुछ इलेक्ट्रॉन्स स्थानांतरित हो जाते है।
c. प्रेरण द्वारा आवेश:- यदि किसी चालक वस्तु के निकट किसी धन आवेशित छड़ को इस प्रकार लाया जाता है की यह वस्तु को स्पर्श न करे , तो हम देखते है की अनावेशित चालक के विपरीत पृष्ठों पर विपरीत आवेश आ जाती है। आवेशन की यह विधि प्रेरण द्वारा आवेशन कहलाती है। यह इसलिए होता है की छड़ द्वारा विपरीत आवेश आकर्षित कर लिए जाते है।
Question:- जब कंघी को सूखे बालों में घुमाया जाता है तो यह कागज के छोटे टुकड़े को जो की अनावेशित होते है , आकर्षित क्यों करने लगती है ?
Ans:- घर्षण के कारण कंघी ऋण आवेशित हो जाती है तथा जब कंघी को कागज के टुकड़े के निकट लाया जाता है तो प्रेरण द्वारा कागज के टुकड़े का पृष्ठ आवेशित हो जाता है। कंघी के निकट कागज के टुकड़े में धन आवेश उत्पन्न होता है तथा विपरीत दिशा में ऋण आवेश उत्पन्न होता है , जिसके कारण कंघी , कागज के टुकड़े को आकर्षित करने लगती है।
NOTE:
1. प्रेरण प्रक्रिया द्वारा, एक आवेशित वस्तु पास में रखे एक अनावेशित वस्तु को आकर्षित करती है। तो हम ऐसा कह सकते हैं आकर्षण वस्तु के आवेशित होने का प्रमाण नहीं है। लेकिन आवेशित वस्तु पर प्रतिकर्षण दिखाई देता है।
आवेश के गुण :-
मुख्य रूप से आवेश के निम्नलिखित गुण है ।
a. विधुत आवेश का योगात्मक प्रकृति :- आवेश एक अदिश राशि है अतः किसी वस्तु पर कुल आवेश का मान वस्तु के विभिन्न भागों में उपस्थित आवेशों के बीजगणितीय योग के बराबर होता है ।
b. विधुत आवेश का क्वांटिकरण :- यह वह गुण है जो बतलाता है की किसी वस्तु पर आवेश की मात्रा का मान मूल आवेश ‘e’ का पूर्ण गुणज ही हो सकता है । अर्थात जहाँ n= 1,2,3……
NOTE: हाल ही में खोजा गया है की मूल कण जैसे प्रोटोन तथा न्यूट्रॉन क्वार्कों से मिलकर बने होते है जिन पर एवं आवेश होता है । चूँकि क्वार्क स्वतंत्र अवशता में विध्यमान नहीं है , इसीलिए e ही आवेश का क्वांटम है ।
c. विधुत आवेश का संरक्षण :- इस नियम के अनुसार किसी विलगित निकाय (closed system) में विधुत आवेशों का कुल योग हमेशा नियत (constant) रहता है ।
आंकिक प्रश्न ( आवेश )
|
विधुतदर्शी (Elctroscope):-
यह एक सरल उपकरण है इसकी सहायता से किसी वस्तु पर आवेश की उपस्थिति को ज्ञात किया जाता है जब एक आवेशित वस्तु को इसके संपर्क में लाते हैं तो कुछ आवेश स्वर्ण पत्तियों पर स्थानांतरण हो जाता है एवं प्रतिकर्षण के कारण यह पत्तियां फैल जाती है यदि एक आवेशित वस्तु को पहले से आवेशित विद्युत दर्शी के नजदीक लाते हैं और यदि वस्तु का आवेश और विद्युत दर्शी पर उपस्थित आवेश एक ही प्रकृति का है तो पत्तियां और फैल जाती है और यदि विपरीत प्रकृति का है तो पत्तियां सामान्यतः सिकुड़ जाती है ।
कूलम्ब का नियम :-
इस नियम के अनुसार , विरामावस्था में स्थित किन्ही दो बिन्दुवत आवेशों के मध्य आकर्षण या प्रतिकर्षण बल दो आवेशों के परिमाण के गुणनफल के समानुपाती तथा उनके मध्य दुरी के वर्ग के व्यत्क्रमानुपाती होता है ।
कूलम्ब के अनुसार
समीकरण (1) और (2) से
जहाँ निर्वात की विधुतशीलता ( )
यहाँ पर
( निर्वात के लिए )
अन्य माध्यम के लिए
जहाँ माध्यम की विधुतशीलता है ।
NOTE:-
-
- कूलम्ब का नियम सिर्फ बिंदु आवेश के लिए ही मान्य है ।
- किसी बड़े आवेशों के लिए integration technique का उपयोग किया जाता है ।
- कूलम्ब का नियम से कम दुरी के लिए मान्य नहीं है ।
- विधुत बल संरक्षी बल है ।
- किसी भी माध्यम की विधुतशीलता निर्वात की विधुतशीलता से अधिक होती है ।
सापेक्ष विधुतशीलता :-
निर्वात ( वायु ) के सापेक्ष किसी माध्यम की विधुतशीलता ही माध्यम की सापेक्ष विधुतशीलता कहलाती है ।
अर्थात
वायु/ निर्वात के लिए
माध्यम के लिए
समीकरण (1) और (2) से
वायु/ निर्वात के लिए
धातु के लिए
अध्यारोपण का सिद्धांत :-
इसके अनुसार किसी दिए गए आवेश पर इसके चारों ओर स्थित बहुत से आवेशों के कारण लगने वाले कुल बल का मान उस आवेश पर अन्य आवेशों द्वारा लगने वाले अलग अलग बलों के सदिश योग के बराबर होता है ।
चित्र के अनुसार पर लगने वाले कुल बल का मान होगा
कूलम्ब के नियम का सदिश रूप :-
माना की दो बिंदु आवेश तथा है जिसका स्थिति सदिश क्रमशः तथा है .
अब , = पर के कारण लगने वाला बल है ।
उसी प्रकार = पर के कारण लगने वाला बल है ।
से की बीच की दुरी है तथा जिसकी दिशा से की ओर है ।
से की बीच की दुरी है तथा जिसकी दिशा से की और है ।
इकाई सदिश से की ओर
and इकाई सदिश से की ओर
अर्थात दो बिंदु आवेश तथा जिसकी स्थिति सदिश क्रमशः तथा है ।
तब पर द्वारा लगने वाला कूलम्ब बल होगा ।
उसी प्रकार पर द्वारा लगने वाला कूलम्ब बल होगा ।
आंकिक प्रश्न ( कूलम्ब बल )
|
आंकिक प्रश्न ( कूलम्ब बल का सदिश रूप )
|
आंकिक प्रश्न ( सापेक्ष विधुतशीलता )
|
स्थिर विधुत बल तथा गुरुत्वाकर्षण बल की तुलना
स्थिर विधुत बल ( Electrostatic Force )
|
गुरुत्वाकर्षण बल (Gravitational Force)
|
विधुत क्षेत्र :-
किसी आवेशित वस्तु के चारों ओर का वह क्षेत्र जहाँ तक इसके प्रभाव का अनुभव किया जा सके , विधुत क्षेत्र कहलाता है ।
NOTE:-
1. किसी आवेशित वस्तु का विधुत क्षेत्र अनंत तक फैला रहता है ।
2. आवेश विधुत क्षेत्र तथा चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न करता है
विधुत क्षेत्र की तीव्रता :-
किसी विधुत क्षेत्र के अंदर किसी बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता , उस बिंदु पर रखे इकाई धन आवेश पर लगने वाले बल के रूप में परिभाषित किया जाता है ।
माना की के कारण पर लगने वाला बल है तो परिभाषा के अनुसार P बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी
विधुत क्षेत्र की तीव्रता एक सदिश राशि है तथा इसकी दिशा बल की दिशा की ओर होती है । इसका विमीय सूत्र होता है तथा इसका S.I मात्रक N/C होता है ।
NOTE:- विधुत क्षेत्र में किसी आवेश पर लगने वाला बल होगा
किसी बिंदु आवेश के कारण किसी बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता :-
माना की Q एक बिंदु आवेश है। इससे r दुरी पर एक बिंदु P है जहाँ परिक्षण आवेश रखा गया है ।
कूलम्ब के नियम के अनुसार द्वारा पर लगने वाला बल का मान होगा ।
परिभाषा के अनुसार बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी ।
अध्यारोपण का सिद्धांत :- (same as previous)
आंकिक प्रश्न ( विधुत क्षेत्र की तीव्रता )(1) हीलियम नाभिक के कारण उससे 1Å की दुरी पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिये । (8) दिए गए चित्र में बिंदु P पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिये । (9) दिए गए चित्र में बिंदु P पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात कीजिये । (10) एक स्थान पर का विधुत क्षेत्र उत्तर दिशा में दिष्ट है । इस क्षेत्र में एक ऐसी वस्तु स्थित है जिस पर इलेक्ट्रान की अधिकता है । वस्तु पर लगने वाले बल का परिमाण एवं दिशा ज्ञात कीजिये । ( दक्षिण दिशा में ) (a) दोनों आवेशों को मिलाने वाली रेखा के मध्य बिंदु पर विधुत क्षेत्र कितना है ? -ve आवेश की ओर (b) यदि परिणाम का कोई -ve आवेश इस बिंदु पर रखा जाये, तो यह कितने बल का अनुभव करेगा ? +ve की ओर (15) 8μC तथा -12μC के दो बिंदु आवेश परस्पर 0.04 m की दुरी पर स्थित है । इन्हें मिलाने वाली रेखा के किस बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता शून्य होगी ? ( +ve आवेश से 0.178 m दूर बाहर की ओर ) |
विधुत बल रेखाएँ :-
विधुत क्षेत्र को अच्छी तरह से समझने के लिए माइकल फैराडे ने विधुत बल रेखाओं का अवधारणा दिया । यदि किसी विधुत क्षेत्र में किसी इकाई धन आवेश को गति के लिए स्वतंत्र कर दिया जाए तो वह जिस पथ के अनुदिश गति करता है ( सीधी या वक्रीत ) , वह पथ विधुत बल रेखाएँ कहलाती है । यह पूर्ण रूप से काल्पनिक है ।
विधुत बल रेखाओं के गुण :-
1 . विधुत बल रेखाएँ धन आवेश से निकलती है तथा ऋण आवेश में प्रवेश करती है ।
2 . बिधुत बल रेखाएँ पूर्ण रूप से काल्पनिक होती है फिर भी बिधुत व्यवहार को समझने के लिए इनका बहुत अधिक महत्व है ।
3 . विधुत बल रेखा के किसी बिंदु पर खींची गई स्पर्श रेखा (tangent) उस बिंदु पर परिणामी विधुत क्षेत्र की दिशा बतलाती है ।
4 . दो विधुत बल रेखाएँ कभी भी एक दूसरे को नहीं काट सकती है ।
CAUSE:- यदि दो विधुत बल रेखाएँ एक दूसरे को काटती है तो प्रतिच्छेद बिंदु पर दो स्पर्श रेखाएँ होंगी। इसका अर्थ है की उस बिंदु पर परिणामी विधुत क्षेत्र के दो दिशाएं होंगी , जो की संभव नहीं है । अतः दो विधुत बल रेखाएँ कभी भी एक दूसरे को नहीं काट सकती है ।
5 . जिस स्थान पर विधुत क्षेत्र प्रबल होता है वहाँ विधुत बल रेखाएं पास पास होती है तथा विधुत क्षेत्र दुर्बल होने पर विधुत बल रेखाएं दूर दूर हो जाती है ।
6 . किसी चालक के अंदर से विधुत बल रेखाएं नहीं गुजर सकती है । जबकि विधुत बल रेखाएं किसी भी कुचालक या परावैधुत पदार्थ से गुजर सकती है ।
7. विद्युत बल रेखाएं हमेशा चालक सतह के लंबवत निकलती है।
8. विद्युत बल रेखाएं कभी भी बंद लूप नहीं बनती है जबकि चुंबकीय बल रेखाएं बंद लूप बनती है
9. किसी आवेश से प्रारंभ होने वाली अथवा किसी आवेश पर समाप्त होने वाली बल रेखाओं की संख्या उस आवेश के परिमाण के समानुपाती होती है।
यहाँ पर
10. किसी बिंदु पर विद्युत क्षेत्र की तीव्रता उसे बिंदु के परितः एकांक क्षेत्रफल के अभिलंब गुजरने वाली बल रेखाओं की संख्या के बराबर होती है
11 . समरूप विधुत क्षेत्र :- जब विधुत क्षेत्र के हरेक बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता ( परिमाण तथा दिशा ) सामन हो तो उसे समरूप विधुत क्षेत्र कहते है ।
आंकिक प्रश्न ( समरूप विधुत क्षेत्र )(1) एक इलेक्ट्रान ऊर्ध्वाधर ऊपर की ओर दिष्ट के समरूप विधुत क्षेत्र में 1.5 cm दुरी तक गिरता है । विधुत क्षेत्र का परिमाण अपरिवर्तित रखते हुए उसकी दिशा ऊर्ध्वाधर निचे की ओर करने पर अब एक प्रोटोन उतनी ही दुरी तक गिरता है । दोनों दशाओं में गिरने में लगा समय ज्ञात कीजिये । ( गुरुत्वाकर्षण को नगण्य मानिये ) |
विधुत द्विध्रुव :-
जब दो समान परिमाण के विपरीत प्रकृति के बिंदु आवेशों को कुछ दुरी पर पृथक रखा जाता है तो यह बनावट विधुत द्विध्रुव कहलाता है । विधुत द्विध्रुव का कुल आवेश शून्य होता है ।
दोनों आवेशों के मध्य दुरी को द्विध्रुव लम्बाई कहते है यह एक सदिश राशि है और इसकी दिशा -ve से +ve आवेश की ओर होती है ।
विधुत द्विध्रुव आघूर्ण :-
विधुत द्विध्रुव के किसी आवेश के परिमाण तथा द्विध्रुव लम्बाई के गुणनफल को विधुत द्विध्रुव आघूर्ण कहते है । इसे P द्वारा सूचित किया जाता है।
अर्थात ,
जहाँ द्विध्रुव की लम्बाई है । यह एक सदिश राशि है जिसकी दिशा -ve से +ve आवेश की ओर होती है । इसका S.I मात्रक N-m होता है । इसका एक अन्य मात्रक debye होता है
विधुत द्विध्रुव की अक्षीय रेखा पर स्थित किसी बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता :-
माना की AB एक विधुत द्विध्रुव है जो +q तथा -q आवेशों से बने है तथा दोनों की बीच की दुरी 2d है ।
द्विध्रुव की अक्षीय रेखा पर द्विध्रुव के केंद्र O से r दुरी पर स्थित किसी बिंदु P पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है ।
-q आवेश के कारण बिंदु P पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी
+q आवेश के कारण बिंदु P पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी
अध्यारोपण के सिद्धांत के अनुसार , P बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी ।
( यहाँ पर की दिशा की ओर होगी ।)
छोटे द्विध्रुव के कारण ( अर्थात )
अर्थात
विधुत द्विध्रुव की निरक्षीय रेखा पर स्थित किसी बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता :-
माना की AB एक विधुत द्विध्रुव है जो +q तथा -q आवेशों से बने है तथा दोनों की बीच की दुरी 2d है ।
द्विध्रुव की निरक्षीय रेखा पर द्विध्रुव के केंद्र O से r दुरी पर स्थित किसी बिंदु P पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है ।
-q आवेश के कारण बिंदु P पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी
की ओर
उसी प्रकार , +q आवेश के कारण बिंदु P पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी
की ओर
इसीलिए , अध्यारोपण के सिद्धांत के अनुसार , P बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी ।
( यहाँ पर की दिशा की विपरीत होगी ।
छोटे द्विध्रुव के कारण ( अर्थात )
अर्थात
NOTE:-
विधुत द्विध्रुव के कारण किसी अन्य बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता :-
माना की AB एक विधुत द्विध्रुव है जो +q तथा -q आवेशों से बने है तथा दोनों की बीच की दुरी 2d है ।
इस द्विध्रुव के कारण एक बिंदु P पर , जिसके केंद्र के सापेक्ष ध्रुवीय निर्देशांक () है, विधुत क्षेत्र की तीव्रता ज्ञात करनी है ।
चित्र के अनुसार , विधुत द्विध्रुव AB जिसका द्विध्रुव आघूर्ण p है , OP की दिशा में घटक तथा OP के लम्बवत दिशा में घटक है । विधुत द्विध्रुव के कारण p बिंदु पर विधुत क्षेत्र के तीव्रता , p बिंदु पर तथा के कारण विधुत क्षेत्रों की अलग- अलग तीव्रताओं के परिणामी के बराबर होगी ।
P बिंदु पर ( घटक ) की अक्षीय स्थिति में है , अतः इसके कारण P बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी
इसकी दिशा की ओर होगी
इसी प्रकार , P बिंदु पर ( घटक ) की निरक्षीय स्थिति में है , अतः इसके कारण P बिंदु पर विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी
इसकी दिशा के लम्बवत होगी
अतः P बिंदु पर परिणामी विधुत क्षेत्र की तीव्रता होगी
यदि परिणामी तीव्रता की दिशा के साथ कोण बनती है , तो चित्र के अनुसार
किसी समरूप विधुत क्षेत्र में स्थित विधुत द्विध्रुव पर बल और बल आघूर्ण
माना की AB एक विधुत द्विध्रुव है जो दो आवेश -q तथा +q से मिलकर बने है । यह विधुत क्षेत्र के साथ कोण बनाया हुआ है ।
विधुत क्षेत्र के कारण द्विध्रुव के आवेशों +q तथा -q पर लगने वाले बल क्रमशः +qE तथा -qE है ।
अतः -q आवेश पर लगने वाला बल आघूर्ण होगा
उसी प्रकार +q आवेश पर लगने वाला बल आघूर्ण होगा
इसीलिए द्विध्रुव पर लगने वाला कुल बल आघूर्ण होगा ।
Special Case:-
-
- यदि तो
- यदि तो
- यदि तो
किसी समरूप विधुत क्षेत्र में स्थित किसी विधुत द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा
विधुत क्षेत्र के अंदर किसी द्विध्रुव को एक स्थिति से दूसरे स्थिति तक घुमाने में किया गया कार्य ऊर्जा के रूप में संचित हो जाता है , जिसे द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा कहते है ।
हम जानते है की समरूप विधुत क्षेत्र के रखे विधुत द्विध्रुव पर लगने वाला बल आघूर्ण होगा ।
विधुत द्विध्रुव को कोण घुमाने में किया गया कार्य होगा
से तक घुमाने में किया गया कुल कार्य होगा
द्विध्रुव की स्थितिज ऊर्जा समरूप विद्युत क्षेत्र में उस कार्य को कहते हैं जो द्विध्रुव को विद्युत क्षेत्र की लंबवत दिशा से किसी दी गई दिशा में घुमाने के लिए कार्य करना पड़ता है अर्थात एवं तब
विशेष स्थितियां (Special Cases)
जब θ=0° (अर्थात द्विध्रुव विद्युत क्षेत्र की दिशा के समांतर हो ),तो U=-PEcosθ =-PE ( न्यूनतम )
जब θ=90° (अर्थात द्विध्रुव विद्युत क्षेत्र की दिशा से 90° पर हो ), तो U=-PEcos 0°=0
जब θ=180° (अर्थात द्विध्रुव विद्युत क्षेत्र के प्रति समांतर हो ), तो U=-PEcos180° अर्थात U=PE ( महत्तम )
आंकिक प्रश्न ( विधुत द्विध्रुव )(1) +2μC तथा -2μC के दो बिंदु आवेशों के बीच की दुरी 3 cm है । इस निकाय का द्विध्रुव आघूर्ण ज्ञात कीजिये । (11) किसी विद्युत द्विध्रुव के 0.1μC के दो आवेशों के मध्य दूरी 1.0 cm है । द्विध्रुव 10³ N/C के बाह्य क्षेत्र में रखा जाता है । द्विध्रुव पर क्षेत्र द्वारा लगाया गया अधिकतम बल आघूर्ण कितना होगा ? (12) हाइड्रोक्लोरिक अम्ल (HCl) के अणु का द्विध्रुव आघूर्ण है । इस पर समरूप क्षेत्र सामर्थ्य द्वारा लगाए गए अधिकतम बल आघूर्ण की गणना कीजिए। (13) द्विध्रुव आघूर्ण वाले एक नमूने को विद्युत क्षेत्र द्वारा ध्रुवित कराया जाता है । जब द्विध्रुव क्षेत्र की दिशा से के कोण पर हो तो किए गए कार्य को ज्ञात कीजिए। (0) (14) किसी पदार्थ के अणु का स्थाई द्विध्रुव आघूर्ण है इसके एक मोल को का प्रबल विद्युत क्षेत्र लगाकर ध्रुवित किया जाता है क्षेत्र की दिशा को अचानक बदल देते हैं पदार्थ द्वारा मुक्त ऊष्मा की गणना कीजिए। (3.011J) |
सतत एवं एक समान आवेश वितरण के कारण विद्युत क्षेत्र
इस प्रकार के वितरण में कई आवेश एक निश्चित अल्प दूरी पर व्यवस्थित होते हैं
रेखीय आवेश वितरण :- प्रकार के वितरण में आवेश एक रेखा पर वितरित होता है । उदाहरण के लिए एक तार पर आवेश ,एक वलय पर आवेश इत्यादि इस प्रकार के वितरण को रेखीय आवेश घनत्व (λ) द्वारा व्यक्त करते हैं अर्थात
पृष्ठीय आवेश वितरण :- इस प्रकार के वितरण में आवेश किसी सतह पर वितरित होता है । उदाहरण के लिए चालक गोले पर आवेश, चालक चादर पर आवेश इत्यादि इस प्रकार के वितरण को पृष्ठ आवेश घनत्व (ρ) द्वारा व्यक्त करते हैं अर्थात
आयतन आवेश वितरण :- इस प्रकार के वितरण में आवेश किसी वस्तु के संपूर्ण आयतन में वितरित होता है। उदाहरण के लिए चालक गोले पर आवेश इस प्रकार के वितरण को आयतन आवेश घनत्व (σ) द्वारा व्यक्त करते हैं अर्थात
सतत आवेश वितरण के कारण विद्युत क्षेत्र ज्ञात करने के लिए सर्वप्रथम हम दिए गए आवेशित निकाय को अल्पांश आवेशों में विभाजित करते हैं प्रत्येक अल्पांश आवेश बिंदु आवेश की तरह व्यवहार करता है अब इस अल्पांश आवेश के कारण दिए गए बिंदु पर विद्युत क्षेत्र या विद्युत बल ज्ञात करते हैं । दिए गए बिंदु पर परिणामी विद्युत क्षेत्र या विद्युत बल इन अल्पाँशों के कारण उत्पन्न विद्युत क्षेत्रों या विद्युत बालों के योग के तुल्य होता है।
अर्थात
आवेश का संतुलन
यदि किसी भी आवेश पर परिणामी बल शून्य है तो वह संतुलन में कहलाता है यदि निकाय का प्रत्येक आवेश संतुलन में है तो संपूर्ण निकाय संतुलन में होगा।
संतुलन के प्रकार
स्थाई संतुलन: एक आवेशित कण को संतुलन की स्थिति से थोड़ा सा विस्थापित करने पर यदि वह अपनी पूर्व स्थिति में आ जाता है तो यह स्थाई संतुलन में कहलाता है स्थाई संतुलन की स्थिति में स्थितिज ऊर्जा (U) न्यूनतम होता है
अस्थाई संतुलन: यदि संतुलन की स्थिति से विस्थापित करने पर आवेश अपनी पूर्व स्थिति पर कभी वापस नहीं आता है तो वह अस्थाई संतुलन में कहलाता है अस्थाई संतुलन की स्थिति में स्थितिज ऊर्जा (U) महत्तम होती है
उदासीन संतुलन: यदि संतुलन की स्थिति से विस्थापित करने पर आवेश ना तो अपनी पूर्व स्थिति पर आता है और ना ही आगे की ओर गति करता है यह उसी स्थिति में ही बना रहता है जिसमें उसे रखा गया है तो यह उदासीन संतुलन में कहलाता है उदासीन संतुलन की स्थिति में स्थितिज ऊर्जा नियत रहती है